Friday 16 October 2015

प्रेम की अभिव्यक्ति - a poem on expression of love ..

दोस्तों ,

"प्रेम " एक ऐसा शब्द है जिससे हम में से शायद ही कोई परिचित न हो। प्रेम एक ऐसा भाव और अहसास है जिसे हमने अपने जीवन में ज़रूर अनुभव किया होगा। प्रेम का  हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण  स्थान होता है। प्रेम को सिर्फ प्रेमी प्रेमिका से जोड़कर नहीं देखना चाहिए ,प्रेम तो हर एक रिश्ते की मजबूत नींव है।  इसी आशय को लेकर मैंने ये कविता लिखी है ,जिसमे प्रेम की अभिव्यक्ति समाहित है। मुझे विश्वास है आप सभी लोगों को प्रेम भाव से परिपूर्ण ये कविता अवश्य पसंद आएगी....   

प्रेम की अभिव्यक्ति 


कमल पुष्प सा निर्मल रूप,ऐसा होता है प्रेम का स्वरुप,
प्रेम ह्रदय में  है  रचा बसा ,अजर अमर ऐश्वर्य सा।।

प्रेम दो हंसो का जोड़ा है, जिसने हर सीमा को छोड़ा है,
प्रेम प्रभु का प्रताप है, जो हर लेता सब संताप है।। 

प्रेम ही राधा और कृष्ण है , जो बसा सृष्टि के हर कण में है,
प्रेम ना जाने कोई भाषा और बोली, इसकी है अपनी अभिव्यक्ति निराली।।

प्रेम सदृश्य और चिरायु है ,अमृत्व ही इसकी आयु है, 
हर बंधन से मुक्त है जो, युगों युगों से व्याप्त है जो।।

प्रेम दो  आत्मा का मिलन है, शरीर तो बस माध्यम है,
गंगा के पावन जल समान, प्रेम का है पवित्र स्थान।।

जीवन की लौ को चेतन करता, प्रेम कभी नहीं है मरता,
प्रेम में पर्वत सी शक्ति है, इसकी अपनी अभिव्यक्ति है।।

प्राप्त जिसे हुआ सच्चा प्रेम, उसे मिली है भाग्य की देन,
सूर्य की सुनहरी किरणों सा, प्रेम है योगी की तपस्या जैसा।।

प्रेम प्रभु की भक्ति है, प्रेम की अपनी अभिव्यक्ति है, 
मन ही जाने इसकी अनुभूति, ये ही है 'प्रेम की अभिव्यक्ति' ।।

Friday 9 October 2015

Meri Maa - A heart touching poem on Mother both in Hindi & English


प्रिय मित्रों, 

यह कविता इस धरती पर दिव्य आत्मा के लिए समर्पित है .. "माँ"। माँ शब्द ही है जिसमे सारा ब्रह्माण्ड समाया है।  ये एक शब्द ही काफी है ये बताने के लिए की किस प्रकार एक माँ  के मन में अपने बच्चे के प्रति शाश्वत प्रेम, करुणा,  दया , क्षमा ,त्याग, सहनशीलता आदि भावनाएं होती हैं। हमारे जीवन के प्रथम शब्द जो हम इस  दुनिया में आते ही लेते हैं  उस भगवान को सम्मान के साथ ... मैं एक छोटी सी कविता समर्पित करता हूँ  .....

                                                 

                                            मेरी माँ 


मेरी माँ, दे दो छाँव मुझे अपने मातृत्व की.… 
जैसे  जीवों को पोषती है पृथ्वी उस तत्व की। 

अमृत  है तेरी वाणी, है पता मुझे.…
कभी न अवहेलना करूँ तेरी, प्रभु आशीष दे मुझे।

जीवन ज्योत का तू ही है स्त्रोत हे माँ.…
तू ही धमनियों में बहता रक्त प्रवाह है  मेरी माँ। 

जब भी मैंने निराशा  के अन्धकार में गोता लगाया
तू ही है वो सम्बल, जिसने पार लगाया। 

जब जब निराशा और अवसाद में मेरे अश्रु छलके 
माँ, तू भी तो उस वक्त , अपने नैनों के सावन को न रोक सके। 

जितनी थी ममता, तूने मुझे दे डाली
जैसे पुष्प कमल को सींचता है माली। 

मेरे अधरों पर मुस्कान, तेरी ही है देन…  
मेरे निद्रा के स्वपनों को  ,तुझसे मिला है चैन। 

हे माँ, तू मेरी हर एक विजय का है कारण
क्यूंकि, तूने मुझ साधारण को बनाया है असाधारण। 

तुम वो पुस्तक हो, जो है ज्ञान से भरी
माँ, समस्त प्राणियों में तुम ही हो सर्वोपरि।

हर्ष और विषाद को तूने  किया  है सम… 
माँ, मैं तेरे विश्वास को जिऊंगा हर दम। 

है मेरी ये प्रार्थना तुझसे, तू कभी न मुझसे रूठे… 
युगों युगों तक तुझसे मेरा साथ कभी न छूटे। 

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Dear friends, This poem is dedicated to the divine soul on this earth.."our mother". The word Maa ( Mother) itself is sufficient to describe the feelings of eternal love, care & sacrifice a mother does happily for her child. With due respect to the first god of our life...I had described mother in the form of a small poem...... 


My Mother

My mother, Give me the shelter of your motherhood. ...
like all the elements are nurtured by the goddess earth.

Your voice is immortal, I know. ...
I never disregard you, God bless me.

You are the source of life, O Mother . ...
you are the blood that flows in my arteries....

Whenever I swayed in the darkness of despair..
That supplement is you, who brought in.

When in despair and depression my tears spills..
Mom, you also can't stop your tears that time.

All the motherhood you have, you gave me..
As the gardener waters the flowers like his child.

The smile on my lips, is because of you...
I found relief in all my dreams because of you.

O Mother, you are the cause of my every victory...
Because, You made me extraordinary from ordinary.

You are the book, full of wisdom..
Mom, you are paramount in all beings.

You have made even, the joy and sadness ...
Mother, I will live up your faith till breath.

It is my prayer to you, not be upset with me ...
Ages and ages, I want to be with you...










नोट : अगर आपको ये कविता अच्छी लगे तो कमेंट सेक्शन में जाकर अपने विचार अवश्य प्रकट करें।
Note: If you like the poem the do share your views in the comment section of this blog.

Thank You.....


  

Thursday 8 October 2015

BRIEF INTRODUCTION & THE FIRST POEM

                                                             
                         Chandrakant - ''A poet by Heart''


A VERY WARM HELLO TO ALL THE DEAR READERS. I AM CHANDRAKANT - A SIMPLE PERSON AND A CHARTERED ACCOUNTANT BY PROFESSION. I AM PRESENTLY WORKING IN BHEL JHANSI AS A FINANCE PERSON. I AM NOT A POET BY BIRTH. IT HAPPENS IN ONE FINE MORNING IN THE HOT SUMMERS OF THE YEAR 2009 WHEN I AFTER OFFERING WATER TO LORD SUN WAS HAVING A DEEP IDEA IN MY MIND. CERTAIN THOUGHTS EMERGE AUTOMATICALLY AND I STARTED WRITING ON A PIECE OF PAPER AND THAT WAS THE FIRST POEM I HAVE WRITTEN. SINCE THEN THE PEN NEVER STOPPED AND WITH GODS GRACE AND ELDERS BLESSINGS I HAVE PUT THE REAL LIFE FEELINGS IN MY POEMS. I HOPE YOU ALL ADMIRE THIS LITTLE PIECE OF WORK. THANK YOU.

YOUR'S 
CHANDRAKANT





This is my first poem dedicated to the goddess of knowledge and arts "Maa Saraswati"


             " माँ  सरस्वती " 

            प्रातः स्मरण करूँ माँ शारदे,
               वंदन अभिनंदन भक्ति का वर दे।
            ज्ञान  से भर दो मन को मेरे,
                दूर हों सब अन्धकार के घेरे।।


            दे दो मुझे आशीष बस इतना,
                 सागर जल की दो बूंदों जितना।
            इन दो बूंदों को बनाकर मोती ,
                 अर्पण करूँ  आपके चरणों में प्रीती।। 


            ह्रदय में  मेरे  पुष्प खिला दो ,
                 सुगंध से जिसकी सबका मन हरषे।
            प्रेम मेरी वाणी में भर दो।
                  पवित्र प्रेम की धारा बरसे।।


            मुझको माँ अपने नैनों की ज्योत से,
                 दे दो वो अलौकिक ज्योति।
            दीपक बनकर जलूं सदा मैं ,
                लौ की अग्नि से रोशन हो बाती।।


            मुझे माँ  अपने ऐश्वर्य की,
                दे दो छाँव जिसका लेकर आश्रय।
            परोपकार करूँ उन पतितों पर,
                 चाहिए जिन्हे भक्ति का प्रश्रय ।।


            दे दो माँ मुझे धैर्य हिमालय सा,
                अडिग रहूँ अपने लक्ष्य को पाने।
            क्रोध की ज्वाला को पी जाऊं मैं ,
               आपके ह्रदय में माँ बस जाऊं  मैं।।


             प्रातः स्मरण करूँ माँ शारदे। वं
दन अभिनन्दन भक्ति का वर दे।। 

If you like the poem then do share your views. It will give me more enlightened energy. 

Copyright © 2015 by Chandrakant Chowksey
All rights reserved. This work or any portion thereof
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